मौखिक सम्प्रेषण
अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions)—–
जब कोई संवाद अथवा सूचना मुख से उच्चारण कर प्रेषित की जाये तो इसे मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं। अन्य शब्दों में, मौखिक सम्प्रेषण से आशय उस संवाद या संदेश या सूचना से होता है, जिसे मुख के उच्चारण द्वारा प्रेषित किया जाता है, लेखनी द्वारा लिखकर नहीं। विली तथा हार्टी के अनुसार, “उच्चारित शब्द सम्प्रेषण की सर्वोत्तम विधि है क्योंकि इसमें संकेत तथा वाणी का रूप भी साथ होता है, साथ ही साथ प्राप्तकर्त्ता प्रश्न भी कर देता है।”
इस प्रकार यह सम्प्रेषण की एक प्रक्रिया के अन्तर्गत सर्वोपरि है क्योंकि इस प्रकार के शब्दों के साथ-साथ शारीरिक भाषा का भी प्रयोग किया जाता है जिससे संदेश भेजने वाले व्यक्ति के हाव-भावों को भी जाना जा सके।
साधन या विधियाँ (oral communication Means or Methods)—
मौखिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित साधन अथवा विधियाँ अपनायी जाती हैं—
(1) नये कर्मचारी को संस्था कार्य से परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाया जाता है।
(2) समय-समय पर साक्षात्कार द्वारा कर्मचारियों की समस्याएँ जानी जाती हैं एवं दूर की जाती हैं।
(3) संयुक्त विचार-विमर्श द्वारा संस्था की नीति, भावी विकास, नवीन निर्माण विधियाँ जाती हैं।
(4) सभाएँ एवं सम्मेलन आयोजित कर कम्पनी एवं संगठन को सूचनाएँ दी जाती हैं।
(5) रेडियो पर विज्ञापन, प्रचार एवं जन सम्पर्क करके मौखिक संदेश दिया जा सकता है।
(6) कम्पनी के अध्यक्ष के भाषण में कम्पनी की नीति संबंधी कई मामलों की सूचना होती है जो अंशधारियों एवं कर्मचारियों को प्रसारित की जाती हैं।
(7) टेलीफोन द्वारा संस्था के बाहरी पक्षकारों को विभिन्न बातों, उत्पादों एवं सेवाओं कि जानकारी दी जा सकती है
(8) यात्री प्रतिनिधि, विक्रय प्रतिनिधि एवं अन्य प्रतिनिधि द्वारा भी मौखिक संप्रेक्षण किया जा सकता है
(9) श्रम संघ द्वारा व्यवसाय की दैनिक नीति स्पष्ट की जा सकती है।
(10) मौखिक के साथ दृश्य साधन के रूप में टेलीविजन का उपयोग किया जा सकता है
लाभ अथवा गुण (oral communication Advantages or Merits)—
मौखिक सम्प्रेषण के लाभ अथवा गुण निम्नलिखित हैं-
(1) समय एवं धन की बचत — मौखिक सम्प्रेषण में संदेश को लिखने की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए संदेश लेखन में समय, कागज एवं स्याही आदि पर व्यय नहीं करना पड़ता
(2) अत्यधिक प्रभाव पूर्ण-मौखिक रूप से दिया गया संदेश श्रोता पर तुरन्त प्रभाव डालता है। शब्दों के अतिरिक्त शारीरिक अंगों के परिचालन द्वारा संदेश को सुगमता से समझने योग्य एवं अधिक प्रभावोत्पादक बनाया जा सकता है।
(3) भ्रम का तुरन्त निवारण-मौखिक सम्प्रेषण में यदि संदेश में कोई बात स्पष्ट न हो तो अस्पष्टता तुरन्त दूर की जा सकती है। स्पष्टीकरण में व्यर्थ का समय नहीं लगता।
(4) परिवर्तन की सुगमता— मौखिक संदेश में न केवल आवश्यकतानुसार सुगमता से तुरन्त परिवर्तन किया जा सकता है, बल्कि संदेश गलत ढंग से बतलाया गया है तो वह तुरन्त सुधारा भी जा सकता है।
(5) लोचपूर्ण साधन – यह संदेश प्रेषण का लोचपूर्ण साधन है। इसमें विचारों को प्रेषिति के अनुसार अधिकाधिक स्पष्ट किया जा सकता है एवं उन्हें संक्षिप्त अथवा विस्तृत किया, जा सकता है। इससे संदेश की लोचशीलता में वृद्धि होती है।
(6) व्यावसायिक चातुर्य एवं कौशल का विकास-मौखिक सम्प्रेषणद्वारा में व्यावसायिक चातुर्य, कौशल एवं व्यहारिकता जैसे गुणों का विकास होता है करने का ढंग आता है। परिणामतः प्रबंधकीय प्रतिभा का भी विकास होता है।
(7) शीघ्र निर्णय मौखिक सम्प्रेषण द्वारा सम्प्रेषण के अन्य सभी प्रकार में अधिक शीघ्रता से निर्णय लेना संभव होता है। इसका कारण यह है कि इसमें प्रेषक एवं प्रेि दोनों ही आमने-सामने मौजूद होते हैं।
(8) कार्य करने की प्रेरणा आवश्यकता पड़ने पर अथवा संकटकालीन स्थिति को कर्मचारियों की गिरती हुई कार्यकुशलता एवं मनोबल का पुनर्विकास करने तथा कार्य निष्पाद में गति लाने के लिए मौखिक सम्प्रेषण अधिक प्रभावशाली होता है क्योंकि यह प्रत्यक्ष साक्षात् प्रेषक को संभव बनाता है।
(9) परस्पर सद्भावना एवं सहयोग—इसमें प्रेषक एवं प्रेषिति दोनों के मध्य सद्भावन एवं सहयोग बना रहता है। इसका कारण यह है कि दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने मौजूद प्रेष रहते हैं। अतएव किसी प्रकार की आशंका अथवा भ्रम उत्पन्न हो तो उसका निवारण तुरन्त किए किया जा सकता है।
(10) परामर्श एवं नीति निर्धारण में सहायक मौखिक सम्प्रेषण परामर्श एवं नीति निर्धारण के कार्य में अत्यधिक सहायक होता है। सभा आदि में उपस्थित सदस्यों से मौखिक विचार विनिमय करके नीति निर्धारित की जा सकती है। इसी प्रकार पेशेवर परामर्शदाताओं की सेवाएँ भी प्राप्त की जा सकती हैं।
हानि अथवा दोष (oral communication Disadvantages or Demerits)—
मौखिक सम्प्रेषण की हानियाँ अथवा दोष भी हैं, जो निम्नलिखित हैं–
(1) प्रत्यक्ष सम्पर्क के अभाव में अनुपयुक्त मौखिक सम्प्रेषण के लिए संदेश प्राप्तकर्ता का उपलब्ध होना आवश्यक है। किन्तु कभी-कभी अनुपस्थित रहने की दशा में उससे प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं हो पाने की दशा में सम्प्रेषण का महत्त्व नहीं रहता है।
(2) अस्पष्टता मौखिक संदेश के बड़ा होने की दशा में संदेश प्राप्त करने वाले के लिए किसी कथन को समझने में दिक्कत होगी। कभी-कभी संदेश प्रेषक एवं प्रेषिति के बौद्धिक स्तर में अंतर होने से संदेश तुरन्त समझ में नहीं आता है और बार-बार इसका स्पष्टीकरण कराया जाता है किन्तु अवसर के अनुसार अपनी शैली एवं भाषा के उपयोग से यह दोष समाप्त किया. जा सकता है।
(3) लंबे संवाद के लिए अनुपयुक्त मौखिक सम्प्रेषण लंबे संवादों के लिए सर्वथा अनुपयुक्त होता है क्योंकि प्रेषक एवं प्रेथिति दोनों ही के लिए लंबे संवादों को याद रख पाना कठिन होता है।
(4) अधिक व्यय साध्य—– जब संदेश प्रेषक एवं प्रेषिति के मध्य काफी दूरी होती है। और संदेश प्रेषण टेलीफोन पर बातचीत द्वारा किया जाता है तो टेलीफोन करने पर काफी व्यय हो जाता है। इसके विपरीत यदि संदेश डाक द्वारा पोस्टकार्ड में लिखकर भिजवाया जाये तो यही कार्य केवल कुछ पैसे में सम्पन्न हो जाता है। अतः मौखिक सम्प्रेषण अधिक व्यय साध्य भी होता है।
(5) विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए व्यक्तियों के लिए अनुपयुक्त—यदि कोई संदेश एक साथ कई व्यक्तियों को दिया जाना है जो अलग-अलग स्थानों पर दूर-दूर तक फैले हुए हैं तो ऐसी स्थिति में मौखिक सम्प्रेषण सर्वथा अनुपयुक्त सिद्ध होता है।
(6) अनुत्तरदायित्व की भावना को प्रोत्साहन – मौखिक सम्प्रेषण प्रेषिति को अनुत्तरदायी बना देता है इसका कारण यह है कि जब अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का विभाजन एवं प्रसारण मौखिक रूप से किया जाता है तो ऐसी अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों को दूसरों के कंधे पर डालकर बच निकल जाने का प्रसास करता है।
(7) संदेश/संवाद में अशुद्धता-जब सम्प्रेषण की अनेक कड़ियाँ हों और संदेश प्रेषक से सीधे प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा प्रेषिति को न पहुँच रहा हो तो संदेश के अशुद्ध और विकृत रूप में प्रेषिति को पहुँचाने की पूरी संभावना है।
(8) भविष्य के लिए अनुपयुक्त मौखिक संदेश का स्थायित्व नहीं होता है। संदेश प्रेषक अधिकारी के परिवर्तन हो जाने पर आवश्यक नहीं कि उसके अनुसार भविष्य में कार्य किया जाय। अनेक बार मौखिक आदेशों की इस प्रकार की अवहेलना देखने में आयी है और भविष्य में आदेश परिवर्तन की आवश्यकता पड़े या मूल आदेश के विषय में कोई संदेह उत्पन्न हो जाये तो संदर्भ के लिए मूल आदेश के मौखिक होने के कारण कुछ भी उपलब्ध नहीं हो सकेगा.