श्रोता विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में श्रोता विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है ? स्पष्ट कीजिए।, what is Audience Analysis

what is Audience Analysis

श्रोता विश्लेषण

श्रोता विश्लेषण दो शब्दों के योग से बना है, प्रथम शब्द, श्रोता जिसका अभिप्राय संदेश प्राप्तकर्त्ता से है एवं उनके प्रकार से है और दूसरा शब्द, विश्लेषण जिसका अर्थ श्रोता के अन्य बहुत से तथ्यों, जैसे, आयु वर्ग, लिंग, पद, शैक्षणिक योग्यता, बौद्धिक स्तर, आर्थिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि आदि को ध्यान में रखने से है। इस प्रकार श्रोता विश्लेषण का आशय विि संदेश प्राप्तकर्त्ताओं के अनेक तथ्यों की जानकारी कर उनके आधार पर एक पक्षकार द्वारा दूस पक्षकार को संदेश देने से है।

सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु संदेश प्राप्तकर्त्ता या श्रोता होता है। इसी को श्रोत कहा जाता है। अतः सम्प्रेषण प्रेषक एवं श्रोता के बीच सम्प्रेषण की सामान्य पृष्ठभूमि अवस् होती है, जिस पर सफल सम्प्रेषण आधारित होता है। इसलिए श्रोता की पृष्ठभूमि, दृष्टिकोण परिवेश, भावना, पूर्वाग्रह, विश्वास एवं आदत आदि प्रेषक के सम्प्रेषण उद्देश्य को प्रत्य प्रभावित करते हैं। अतः सम्प्रेषण करने से पूर्व यह आवश्यक है कि श्रोता के बारे में अधिक से अधिक जाना जाये और उसका विश्लेषण किया जाये ताकि संदेश देना सहज ही न हो अपितु उसके अनुसार कार्य भी हो जाय।

श्रोता के प्रकार (Types of Audience)

सामान्यत: यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति किसी बात या संदेश को सुनता है, वह कहलाता है। किन्तु सम्प्रेषण-प्रक्रिया में यह अर्थ बहुत ही संकुचित है। अतः सम्प्रेषण प्रक्रिय में श्रोता के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-

(1) वाहक श्रोता— वाहक श्रोता का अभिप्राय ऐसे श्रोता से है जो सर्वप्रथम किसी व्यक्ति से संदेश को प्राप्त करता है और आवश्यकतानुसार अन्य व्यक्तियों को पहुँचाता है इसे प्रथम श्रोता भी कहते हैं।

(2) माध्यमिक या प्रहरी श्रोता—जो संदेश प्राप्तकर्त्ता या श्रोता यह तय करता है कि संदेश को प्राथमिक श्रोता तक पहुँचाया जाये अथवा नहीं, को माध्यमिक या प्रहरी श्रोता कहा जाता है। अन्य शब्दों में, प्रहरी श्रोता के पास संदेश को प्राथमिक श्रोता तक पहुँचने से रोकने का समार्थ्य होता है।

(3) प्राथमिक श्रोता— प्राथमिक श्रोता वह श्रोता होता है जो प्रेषक द्वारा प्रेषित संदेशों पर अपनी प्रतिक्रिया देने का अधिकार रखता है। अन्य शब्दों में, जिस श्रोता को सम्प्रेषक प्रेषक के सुझावों को स्वीकार कर अस्वीकार करने का अधिकार होता है तो उसे प्राथमिक श्रोता के नाम से जाना जाता है।

(4) द्वितीय श्रोता— जो श्रोता प्राथमिक श्रोता के द्वारा संदेश की पुष्टि के उपरांत ही सक्रिय होता है, उसे द्वितीयक श्रोता कहते हैं। प्राथमिक श्रोत द्वारा द्वितीय श्रोता से संदेश पर विचार-विमर्श किया जाता है और उसकी सलाह भी मांगी जाती है। 

(5) स्वतंत्र श्रोता— इसे निरीक्षक श्रोता भी कहते हैं क्योंकि यह संप्रेषण प्रेषक एवं प्राथमिक श्रोता के मध्य हो रहे सम्प्रेषण पर अपनी नजर रखता है। इसलिए यह संप्रेषण को रोकने अथवा उस पर प्रत्यक्ष कार्यवाही नहीं कर सकता है। परन्तु वह संदेश का मूल्यांकन करके इस पर भविष्य में अपनी प्रतिक्रिया देता है।

श्रोता विश्लेषण की प्रक्रिया (Process of Audience)

श्रोता विश्लेषण करने के पूर्व अनेक बातों की जानकारी करना आवश्यक है, जैसे- श्री है, उसका सम्प्रेषक प्रेषिति से क्या संबंध है, सम्प्रेषण की विषय-वस्तु या उसकी पृष्ठभूमि है वह कितना परिचित है, सम्प्रेषण पर श्रोता की संभावित प्रतिक्रिया क्या होगी ? तत्पश्चात् ना विश्लेषण करना सर्वश्रेष्ठ होगा।

संक्षेप में, श्रोता विश्लेषण-प्रक्रिया के अन्तर्गत निम्ननिलिखित कदम/चरण होते हैं— 

(1) सूचनाओं का संग्रह— श्रोता-विश्लेषण-प्रक्रिया के प्रथम चरण में श्रोता के आकार एवं संरचना संबंधी सूचनाओं का संग्रह किया जाता है। श्रोता के अनेक प्रकार होते हैं— व्यक्तिगत एवं सामूहिक। इसलिए प्रत्येक के लिए सम्प्रेषण की भिन्न-भिन्न तकनीक या विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त छोटे एवं बड़े समूहों के श्रोता और व्यवहार भी एक सा नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर, बड़े समूह में श्रोताओं का दृष्टिकोण, शिक्षा, रुचियों एवं जीवन-स्तर में पर्याप्त भिन्नताएँ देखी जा सकती हैं। अतः सूचनाओं का संग्रह करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे कौन से तत्व हैं, जो सभी में समान रूप से देखे जा सकते हैं, जैसे— लिंग, आयु, वर्ग, गरीबी एवं सामुदायिक विशेषता आदि ।

(2) प्राथमिक श्रोता का पता लगाना— हम श्रोता के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन कर चुके हैं। सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्राथमिक श्रोता का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है। इसका कारण यह कि यही श्रोता वास्तव में संदेश को प्राप्त करता है और उसी के द्वारा कार्यवाही की जाती है। अतः प्राथमिक श्रोता को चिह्नित करने के लिए उसी के विषय से संबंधित अधिक से अधिक सुचनाएँ एकत्रित की जानी चाहिए। लेनिक सूचनाओं में यह जानकारी करना आवश्यक नहीं है कि प्राथमिक श्रोता करता क्या है, उसका स्तर क्या है और वह किसका अधिकारी एवं किसका अधीन रूप है ?

(3) श्रोताओं की संभावित प्रतिक्रिया जानना- प्राथमिक श्रोता का पता लगाने के पश्चात श्रोता विश्लेषण के तृतीय चरण में श्रोताओं के बारे में यह जानना आवश्यक है कि सम्प्रेषण के पश्चात् उनकी क्या-क्या प्रतिक्रिया हो सकती है। इसके लिए ये बातें ध्यान में रखनी आवश्यक है—

(i) यदि हम चाहते हैं कि श्रोता हमारे संदेश पर अनुकूल प्रतिक्रिया दे अथवा उसका रूख सकारात्मक रहे तो हमें बड़ी स्पष्टता से संदेश के निष्कर्ष एवं सुझावों से उन्हें अवगत कराना श्रेष्ठ होगा।

(ii) श्रोता को प्रभावित करने के लिए तथ्यों एवं प्रमाणों को तैयार रखना होगा। 

(iii) बड़े श्रोता समूह के समक्ष संदेश के सुझावों एवं निष्कर्षो को अत्यधिक प्रामाणिकता एवं क्रमबद्धता से प्रस्तुत करना होगा। 

(iv) जिन श्रोताओं की प्रकृति आलोचक के रूप में होती है, उनका विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम होती है।

(v) छोटे श्रोता समूह के समक्ष सीधे निष्कर्ष एवं सुझावों के विषय में बात की जा सकती है। 

इस प्रकार श्रोताओं की संभावित प्रतिक्रिया को जानना अत्यधिक आवश्यक है। ताकि भविष्य में किये जाने वाले सम्प्रेषण में किसी प्रकार की बाधा न आये।

( 4 ) श्रोताओं के अनुभव उनके ज्ञान एवं स्तर को जानना—सम्प्रेषण प्रेषिति के लिए संदेश की पृष्ठभूमि से श्रोता का परिवेश, अनुभव, ज्ञान एवं स्तर मेल नहीं खाता है तो श्रोता को अधिक शिक्षित होने की आवश्यकता होती है। इसके लिए सम्प्रेषण प्रेषिति श्रोता से दो-चार प्रश्न पूछ सकता है।

(5) सम्प्रेषण कर्त्ता एवं श्रोता के संबंध की जानकारी करना— श्रोता-विश्लेषण प्रक्रिया के अन्तिम चरण में सम्प्रेषण एवं श्रोता के मध्य संबंध कैसे हैं, की जानकारी करना आवश्यक है। सम्प्रेषण कर्ता की संगठन में स्थिति, श्रोता से उसका संबंध, संदेश की शैली आवाज एवं प्रस्तुतीकरण को प्रभावित करता है। अतः इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

(i) उच्चाधिकारियों, सहयोगियों या अधीनस्थों के साथ सम्प्रेषण भिन्न-भिन्न होता है।

(ii) ग्राहक, ऋणदाता, अंशधारी अपना लेनदार के साथ सम्प्रेषण एवं प्रत्येक अवस्था में संदेश की शैली एवं प्रस्तुतीकरण में भी भिन्नता होती है क्योंकि प्रत्येक का प्रत्येक के साथ भिन्न-भिन्न संबंध होता है।

(iii) यदि सम्प्रेषण पारिवारिक परिवेश के रूप में किया जाता है तो उस संदेश पर प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया पूछ ली जानी चाहिए। 

(iv) यदि सम्प्रेषण प्रेषक एवं श्रोता दोनों एक-दूसरे से अपरिचित हैं तो श्रोता को अपने विश्वास में लेना चाहिए ताकि सकारात्मक प्रतिक्रिया आये, न कि नकारात्मक । 

(v) यदि सम्प्रेषण प्रेषक के प्रति श्रोता के मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह है या श्रोता की अलग ही प्रकार से छवि बनी हुई है तो सम्प्रेषणकर्ता को अपने संदेश से पहले इसे समाप्त कर लेना चाहिए। तत्पश्चात् सूक्ष्मता से बहुत ध्यान से संदेश प्रेषित करना चाहिए। 

(vi) अंत में, सम्प्रेषण प्रेषक को श्रोता की प्रत्येक बात पर निगरानी रखना भी आवश्यक है।

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