प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व Need and Importance of Training

Need and Importance of Training

कर्मचारियों/श्रमिकों के प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व प्रत्येक संस्था के लिए है। कर्मचारियों से कुशलतापूर्वक कार्य तभी करवाया जा सकता है, जबकि यथासमय प्रशिक्षण दिया जाता रहे । वाटकिन्स एण्ड डोड ने लिखा है कि “प्रशिक्षण प्रबंधकीय नियंत्रण का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। दुर्घटनाओं को कम करने, अपव्यय को रोकने तथा किस्म में सुधार करने के लिए प्रशिक्षण सफलतम साधनों में से एक है।”

प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है- 

(1) मानव शक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति— एक संगठन में कई प्रकार की योग्यताओं, ज्ञान और कुशलता वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जबकि आजकल की शिक्षा पद्धति व्यावसायिक संस्थाओं की आवश्यकतानुसार प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध कराने में सर्वदा अनुपयुक्त है। अतः संस्था के लिए आवश्यक योग्यता वाले प्रशिक्षित कर्मचारियों की पूर्ति के लिए प्रशिक्षण का विशेष महत्त्व है।

(2) प्रतिस्पर्द्धा पर विजय – आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रतिसपर्द्धा बढ़ रही है। सतत् प्रशिक्षण के द्वारा ऐसी प्रतिस्पर्द्धा पर आसानी से विजय प्राप्त की जा सकती है क्योंकि प्रशिक्षण एक ओर तो श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है तो दूसरी ओर संस्थाओं का श्रेष्ठ उपयोग होने से उत्पादन लागत कम हो जाती है।

(3) संगठन में स्थिरता- प्रशिक्षित कर्मचारी संगठन में स्थिरता लाने में बहुत सहाय होते हैं और कभी-कभी तो यह देखा गया है कि प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपस्थिति में मुख्यतः कर्मचारी की अनुपस्थिति अनुभव ही नहीं होती है, अपितु प्रशिक्षित कर्मचारी अपने विभाग की अतिरिक्त आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं।

(4) संचालक की समस्याओं का समाधान— संस्थाओं में कर्मचारियों के आवागमन, अनुपस्थिति तथा दुर्घटना से संबंधित अनेक समस्याएँ हैं जिनका समाधान प्रशिक्षण के द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्राहक सेवा, अपव्यय, दूषित कार्यप्रणाली की समस्याओं का समाधान भी प्रशिक्षण के द्वारा संभव है। इन सबके परिणामस्वरूप संचालकीय समस्याओं का समाधान हो जाता है।

(5) संसाधनों की बर्बादी एवं अपव्यय पर रोक— जो व्यक्ति कार्य नहीं जानता है, वह संसाधनों का दुरुपयोग कर सकता है। प्रशिक्षण के द्वारा कर्मचारियों को यंत्रों, उपकरणों, सामग्रियों आदि संसाधनों का विधिवत् उपयोग करना सिखाया जाता है। परिणमास्वरूप इनका अच्छा उपयोग हो सकता है और साधनों की बर्बादी तथा अपव्यय को रोका भी जा सकता है।

( 6 ) उत्पादन की मात्रा एवं किस्म में वृद्धि – श्रमिकों के द्वारा कर्मचारियों के चातुर्य एवं योग्यता में वृद्धि होती है। इसका परिणाम प्रत्यक्ष रूप से श्रमिकों की उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। कर्मचारी कम लागत पर अधिक एवं अच्छा याद करने में समर्थ हो जाते हैं। संबंध में जूशियस ने कहा कि “प्रशिक्षण कर्मचारी के चातुर्य को बढ़ाता है जिसके परिणामस् उत्पादन की मात्रा एवं किस्म बढ़ती है।”

(7) सुदुर श्रम संगठन— प्रशिक्षण कार्यक्रमों से कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मनोदशाओं में परिवर्तन लाया जा सकता है और उनमें संस्था के प्रति अपनत्व भाव, अनुशासन भी उत्पार किया जा सकता है। इसी प्रकार अधिकारियों में कर्मचारियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास भी किया जा सकता है। इस प्रकार संस्था में सुंदर संबंध पनप सकते है।

(8) प्रबंधकों को लाभ— प्रशिक्षित कर्मचारी से प्रबंधकों को बहुत अधिक लाभ होता है क्योंकि कर्मचारी अपने कार्य में दक्ष तथा कुशल हो जाते हैं। इनके काम के ऊपर देखरेख की भी आवश्यकता नहीं होती, जो कार्य उन्हें सौंपा जाता है, उसे वैज्ञानिक ढंग से पूरा करते है।

(9) कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा होना— प्रशिक्षण से कर्मचारियों का ऊँचा होता है। वे कार्य करने की श्रेष्ठ विधि को सीखते हैं। इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। उन्हें अपने काम में संतुष्टि होती है। इस प्रकार वह संस्था के प्रति अधिक नावान बने रहते हैं।

( 10 ) कार्यक्षमता में सुधार— प्रशिक्षण के द्वारा नये कर्मचारियों को ही उचित कार्यसम प्राप्त करने में सहायता नहीं मिलती है अपितु पुराने कर्मचारियों को भी अपनी कार्य के सुधार करने में बड़ी सहायता मिलती है। बीच ने कहा है कि “प्रशिक्षण कर्मचारियों की कार्यक्षमता के स्तर को बढ़ाने में सक्षम है।”

(11) कर्मचारियों की गतिशीलता में वृद्धि— प्रशिक्षण कर्मचारियों का वैयक्तिक विकास करता है, उनको कार्य के प्रति उपयुक्त बनाता है और उनकी पदोन्नति के द्वार खोलत है। इन सबके परिणामस्वरूप उनकी गतिशीलता में वृद्धि होती है।

(12) विकास एवं विस्तार— प्रशिक्षण से संस्था के विकास एवं विस्तार की प्रबल संभावनाएँ उत्पन्न होती हैं। इससे प्रत्येक व्यक्ति के ज्ञान, चातुर्य, क्षमता एवं परिवर्तनों के प्रति अनुकूलता बढ़ती है। परिणामस्वरूप संस्था के भावी विकास एवं विस्तार का रास्ता खुल जाता है।

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