कृत्य विश्लेषण को परिभाषित कीजिए। कृत्य विश्लेषण की विधियों (तरीकों) को समझाइए। Meaning and Definitions of Job Analysis, methods of job analysis.

कार्य / कृत्य विश्लेषण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

कार्य विश्लेषण दो शब्दों से मिलकर बना है— कार्य एवं विश्लेषण। कार्य एक विशिष्ट कार्य क्रिया है जो किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए की जाती है और विश्लेषण से तात्पर्य किसी विषय के संबंध में गहन एवं व्याख्यात्मक अध्ययन करने से है। इस प्रकार कार्य विश्लेषण किसी कार्य के निष्पादन के लिए आवश्यक कार्यों, कर्त्तव्यों, दायित्वों को निर्धारित करने,
कार्यधारक से अपेक्षित योग्यताओं को निश्चित करने और कार्य से संगतपूर्ण सत्ता दायित्व संबंधों को तय करने की प्रक्रिया है।
कार्य विश्लेषण की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) हैकेट के शब्दों में, “कार्य विश्लेषण में कार्य के आवश्यक तत्त्वों एवं उन योग्यताओं का निर्धारण सम्मिलित होता है जो कर्मचारी के प्रभावी कार्य निष्पादन के लिए आवश्यक है।”
(2) मिचैल जे. जूशियस के अनुसार, “कार्य विश्लेषण कार्यों, क्रियाओं, कर्त्तव्यों के संगठनात्मक पहलुओं के अध्ययन की एक प्रक्रिया है जिससे विशिष्टताओं को प्राप्त किया जा सके।”
(3) एडविन बी. फिलिप्पो के शब्दों में, “कृत्य विश्लेषण से तात्पर्य किसी विशिष्ट कृत्य के संचालन एवं उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में सूचनाओं के एकत्रीकरण तथा अध्ययन को प्रक्रिया से है।”
(4) कूडन एवं शरमन के मतानुसार, “प्रत्येक कार्य को निष्पादित करने वाले व्यक्तियों के कर्त्तव्यों, उत्तरदायित्वों एवं अपेक्षित योग्यताओं से सम्बन्धित सूचनाओं का एकत्रीकरण,
विश्लेषण एवं अभिलेखन को कार्य विश्लेषण के नाम से सम्बोधित किया जाता है।”
(5) हेन्डरसन के अनुसार, “कार्य विश्लेषण में प्रकार्यों के विस्तृत विवरण को संकलित करना, प्रौद्योगिकी तथा अन्य कार्यों से कार्य के सम्बन्ध में निर्धारित करना और पदधारी की योग्यताओं, ज्ञान, नियुक्ति, प्रमाप, उत्तरदायित्व तथा अन्य आवश्यकताओं को निर्धारित करना शामिल है।”
इस प्रकार कार्य विश्लेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक निस्चित कार्य से सम्बन्धित प्रकार्यों, कर्त्तव्यों, दूसरे कार्यों के साथ सम्बन्धों और उनके निष्पादन हेतु आवश्यक कौशल एवं योग्यताओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है।

कार्य विश्लेषण की उपयोगिता एवं महत्त्व (Utility and Importance of Job Analysis)

कार्य विश्लेषण कार्यक्रम अच्छे सेवीवर्गीय प्रबंध का अभिन्न अंग होता है। यह श्रम शक्ति, प्रबंध का आधार स्तम्भ है क्योंकि विश्लेषण से प्राप्त निर्णयों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। वस्तुतः कार्य विश्लेषण के आधार पर प्राप्त जानकारी यदि नितान्त आवश्यक नहीं है, तो उपयोगी तो अवश्य ही है। इस संबंध में डेल एस. बीच ने कहा कि “कार्य विश्लेषण कर्मचारी कार्यक्रमों के संबंध में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करता है, यह मानव शक्ति एवं संगठन के प्रबंधकीय कार्यों, समान वेतनमान निश्चित करने, कार्यविधियों में सुधार, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विकास कार्यक्षमता मूल्यांकन तथा दुर्घटना की रोकथाम के कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।”

उपयोगिता एवं महत्त्व इस प्रकार है—
(1) मानव शक्ति नियोजन में लाभदायक— कार्य विश्लेषण श्रमिकों की आवश्यकताओं का ज्ञान कराता है और विभिन्न श्रमिकों के कर्त्तव्यों तथा दायित्वों का निर्धारण करके कार्यों के समन्वय में सहायता पहुँचाता है। इसी कारण कार्य विश्लेषण को मानव शक्ति के नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना गया है।

(2) कार्य वर्गीकरण एवं मूल्यांकन— कार्य विश्लेषण सूचनायें कार्य समूहों का निर्माण करने और विभिन्न कार्यों में संबंध स्थापित करने में भी सहायक होती हैं। कार्य विश्लेषण कार्य मूल्यांकन का आधार भी है जिसके द्वारा संगठन में कार्यों का तुलनात्मक मूल्य निर्धारित किया जा सकता है।

(3) संगठन संरचना का निर्माण— संगठन संरचना की सम्पूर्ण प्रक्रिया में कार्य विश्लेषण एक आधारभूत कार्य है। इसी के आधार पर कार्यों की प्रकृति एवं उन कार्यों के लिए आवश्यक योजनाओं को निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि संगठन संरचना के निर्माण में कार्य विश्लेषण परमावश्यक है।

(4) यंत्रों का प्रमापीकरण— कार्य विश्लेषण यंत्रों एवं उपकरणों की डिजाइनों में भी सहायक होते हैं। इससे कार्य की प्रकृति एवं तकनीकी संरचना के अनुसार प्रमाणित उपकरणों का चयन किया जा सकता है। प्रमाणित मशीनों से कार्य की गति एवं गुणवत्ता में सुधार होता हैं।

(5) प्रबंधकीय कार्यों में सहायता-
(i) नियोजन एवं समन्वय में सहायता— कार्य विश्लेषण संगठन में नियोजन एवं समन्वय में सहायता करता है, जैसे विभिन्न स्तरों पर कौन सी श्रेणी के कर्मचारियों की कितनी आवश्यकता है और कौन-कौन सी योग्यताएँ होनी चाहिए ताकि उपयुक्त व्यक्तियों का चयन किया जा सके। इसके अतिरिक्त कार्य विश्लेषण कर्मचारियों के दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का स्पष्टतापूर्वक विवेचन करता है जिससे कि कर्मचारियों की क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित करने में सुविधा रहती है।

(ii) निर्देशन में सहायता— कार्यविश्लेषण कर्मचारियों की योग्यता एवं गुणों के संबंध में सहायता करता है। इसकी सहायता से अनुशासन एवं परिवेदनाओं के बारे में निर्देशन किया जाता है।

(6) व्यावसायिक चयन में सहायक— कार्य विश्लेषण व्यावसायिक चुनाव प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसे व्यावसायिक चयन की पृष्ठिभूमि कहा जा सकता है। कार्य के विश्लेषण में हमें प्रत्येक कार्य की प्रकृति का अध्ययन हो जाता है, जिससे यह निश्चित करने में सहायता मिलती है कि किसी कार्य विशेष को करने के लिए कर्मचारी में कितनी योग्यता, प्रशिक्षण एवं अनुभव होना आवश्यक है।

(7) कर्मचारी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य में उपयोग— कार्य विश्लेषण से कार्यों की जोखिमों, खतरों एवं अस्वास्थ्यकर परिणामों की जानकारी मिल जाती है। फलत: प्रबंधक इन जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था कर सकते हैं। कार्य संबंधी अस्वास्थ्यकर घटकों को दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं।

(8) भर्ती, चयन एवं नियुक्ति में सहायक— कार्य विश्लेषण उपयुक्त कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति की भर्ती, चयन एवं नियुक्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी है। वास्तव में कार्य विश्लेपर के मूल उद्देश्यों में भर्ती, चयन एवं नियुक्ति संबंधी उद्देश्य इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि कार्य विश्लेषण का अर्थ ही सामान्यतः इसी उद्देश्य के संदर्भ में किया जाता है। कार्य विश्लेषण कर्मचारी भर्ती, चयन एवं नियुक्ति का आधार है क्योंकि इसके द्वारा कार्य संबंधी कर्तव्य, उत्तरदायित्व एवं योग्यताओं का निर्धारण होता है।

(9) कार्य कुशलता का विकास— कार्य विश्लेषण कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता का निर्धारण करता है और कार्य कुशलता के स्तरों को भी निर्धारित करता है। यही नहीं, कार्य विश्लेषण से क्रियाओं एवं उपक्रियाओं के संबंध में आवश्यक जानकारी एकत्र करते समय एवं गति अध्ययन के लिए पृष्ठभूमि भी तैयार की जाती हैं। फलस्वरूप कार्य प्रणालियों में सुधार होता है

(10) कार्य प्रणाली में परिवर्तन— कार्य प्रणालियों के अध्ययन के उपरान्त अधिक उत्पादन देने वाली प्रणाली को लागू करना शोध का विषय बन गया है और इस दिशा में कार्य विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इस कार्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है— (1) औद्योगिक अभियांत्रिकी एवं (2) मानवीय अभियांत्रिकी।

(11) कर्मचारी प्रशिक्षण एवं प्रबंधकीय विकास— कार्य विश्लेषण से प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के संबंध में पूर्ण जानकारी मिलती है, जो प्रशिक्षण एवं विकास कार्यों के लिए आवश्यक है। इस जानकारी के आधार पर प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए विषय-वस्तु का निर्धारण किया जा सकता है। यही नहीं कार्य विश्लेषण से आवेदन-पत्रों की जाँच करने, साक्षात्कार करने आदि में भी सहायता मिलती है।

(12) वेतन एवं मजदूरी प्रशासन में उपयोगी— कार्य विश्लेषण विभिन्न कार्यों का पूर्णत: अध्ययन करके प्रत्येक कार्य को सम्पादित करने हेतु आवश्यक योग्यताओं को स्पष्ट करता है। इसके प्रयोग द्वारा मजदूरी एवं वेतन संबंधी असमानताओं को पूरा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कार्य विश्लेषण द्वारा कार्य अलग-अलग योग्यताओं के साथ-साथ अलग-अलग वेतन दरें भी निश्चित की जा सकती हैं।

(13) नियुक्ति— कार्य विश्लेषण के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि किसी पद के लिए कोई व्यक्ति उपयुक्त है या नहीं। इससे सही पद पर सही व्यक्ति नियुक्त किये जा सकते हैं।

(14) निष्पादन मूल्यांकन— कार्य निष्पादन के लिए स्पष्ट प्रमाप निर्धारित करने में कार्य विश्लेषण सहायक होता है। निष्पादन मूल्यांकन के आधार पर व्यक्तिगत रूप में कार्य निष्पादन की तुलना की जा सकती है।

कार्य विश्लेषण की विधियाँ (Methods of Job Analysis)

कार्य विश्लेषण में सूचना कैसे और किस प्रकार एकत्रित की जाती है और इसका क्या उद्देश्य है। इसके प्रत्युत्तर में, आवश्यक तथ्यों को एकत्रित करने के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है।

(1) प्रश्नावली विधि- कार्य विश्लेषण की इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारियों से फार्म भरवाकर अनेक बातें पूछी जाती हैं, जैसे— कार्य संबंधी कठिनाई, कार्य विवरण के औचित्य और कार्य की सूक्ष्मताएँ आदि। सामान्यतः इस प्रकार के फॉर्म कार्य विश्लेषक द्वारा संबंधित कर्मचारियों को दिये जाते हैं, जिन्हें कार्य के समय ही कर्मचारियों से भरवाया जाता है और यदि उनमें कोई त्रुटि हो तो उसे शुद्ध करवा लिया जाता है। तत्पश्चात् कार्य विश्लेषण विभाग को भेज दिया जाता है, जहाँ प्रबंधक अनेक प्रकार के निर्णय लेते हैं। 

प्रश्नावली विधि जिसे सर्वेक्षण विधि भी कहते हैं, के लाभ इस प्रकार हैं- 

(i) यह साक्षात्कार विधि से कर्म खर्चीली है।

(ii) इसका उपयोग इंजीनियरिंग सलाहकारों द्वारा अधिक किया जाता है। 

(iii) इससे कम समय में अधिक सूचनाएँ एकत्रित हो जाती हैं।

(iv) कर्मचारियों के बारे में सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

परन्तु यह देखा गया है कि कर्मचारी लापरवाही से फॉर्म को भरते हैं जिसकी वजह से या तो सूचनाएँ गलत होती हैं अथवा सूचनाएँ अधूरी रह जाती हैं। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग केवल शिक्षित वर्ग में ही किया जा सकता है। 

(2) साक्षात्कार विधि— कार्य विश्लेषण की इस विधि में कार्य-विश्लेषक पर्यवेक्षकों एवं कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क स्थापित करते हैं और अनेक प्रकार की कई सूचनाएँ एकत्रित करते हैं। इसमें विभिन्न प्रश्नों तथा बातचीत, हावभाव आदि के आधार पर कार्य के प्रति कर्मचारी का अभिमत ज्ञात किया जाता है। इन सबको जानने के लिए सामान्यतः पूर्व निर्धारित साक्षात्कार प्रश्नों एवं फॉर्म्स का उपयोग किया जाता है।

साक्षात्कार के लिए कुछेक नियमों का पालन करना चाहिए (1) साक्षात्कार के उद्देश्य की जानकारी संबंधित कर्मचारी को हो, (2) उद्देश्य पूर्ति से संबंधित अनूकूल प्रश्न पूछे जाने चाहिए, (3) कर्मचारी की भाषा में ही साक्षात्कार लेना चाहिए, (4) कर्मचारियों के विचार को अच्छी तरह समझना और कर्मचारियों को अपने विचार अच्छी तरह स्पष्ट करने का अवसर देना चाहिए।

कार्य विश्लेषण की इस विधि से अनेक लाभ होते हैं— (1) कार्य के प्रति कर्मचारियों एवं पर्यवेक्षकों के विचार तथा दृष्टिकोण का पता आसानी से लग जाता है, (2) कर्मचारी किस प्रकार अपने कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह करते हैं और क्या-क्या कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं और सूचनाएँ देने में सरलता रहती है लेकिन इस विधि से सूचनाएँ प्राप्त करने में कर्मचारी सहयोग कम देते हैं, और अनेक कठिनाइयाँ भी आती हैं, जैसे सूचनाओं का महत्त्वहीन मानना, मूल बात से भटकना और कर्मचारी की सूचना को शब्दों में प्रकट करने में असमर्थता आदि कठिनाइयाँ आती हैं।

(3) अभिलेख विधि-अभिलेख विधि के अन्तर्गत कार्य संबंधी पूर्ण अभिलेखों से सूचनाएँ स्पष्ट करने पर बल दिया जाता है। किन्तु कार्य विश्लेषण इस स्रोत की उपेक्षा करते हैं और नवीन अध्ययन द्वारा ही सूचनाएँ एकत्रित करने पर विश्वास करते हैं। परन्तु पूर्व अभिलेखों में संगृहीत सूचनाएँ प्रायः आशा से अधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं।

अभिलेख विधि से निम्नलिखित लाभ होते हैं- 

(i) कार्य अध्ययन, समय अध्ययन एवं गति अध्ययन सहज हो जाते हैं।

(ii) इसका उपयोग अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं की सम्पूर्ति के लिए किया जा सकता है

अभिलेख विधि का यह दोष है कि इससे यह पता नहीं लगता है कि-

(i) कार्य में कौन-कौन से उपकरण प्रयोग किये गये। 

(ii) कर्मचारी के पर्यवेक्षक एवं अन्य सहयोगियों से किस प्रकार के सम्बन्ध है ?

(iii) कार्य की दशाएँ कैसी है?

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