संदेश पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया श्रोता के संतुष्ट होने या न होने पर निर्भर करती है। ऐसी दशा में यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि उन्हें कैसे संतुष्ट किया जाये ? इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि श्रोता को संतुष्ट करने के लिए सर्वप्रथम उसकी आवश्यकताओं का विश्लेषण करना होगा। अतः सम्प्रेषण प्रेषिति को चाहिए कि वह श्रोताओं की आवश्यकताओं का पता लगाये और उन्हें कैसे पूरा किया जाय, भी पता लगाये।
श्रोताओं की निम्नलिखित आवश्यकताओं का पता लगा कर उन्हें संतुष्ट करें-
(1) सूचना संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति— श्रोता का स्वभाव जिज्ञासु होता है। इसलिए वह सम्प्रेषण से अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करना चाहता है। अतः सम्प्रेषण प्रेषक को चाहिए कि वह श्रोताओं की आवश्यकताओं के अनुसार अच्छे ढंग से संदेश प्रेषित करे।
अच्छे एवं सार्थक ढंग से संदेश प्रेषित करने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं–
(i) श्रोता की सूचनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रेषक के लिए यह जानना आवश्यक है कि श्रोता क्या जानना चाहता है और उसकी इच्छा क्या है ? इन्हें जानना कठिन है क्योंकि श्रोता स्वयं को प्रकट नहीं करता है। ऐसी दशा में संदेश प्रेषक को इन बातों के बारे में उससे पूछ लेना सर्वश्रेष्ठ होगा।
(ii) कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिन्हें श्रोता द्वार पूछा नहीं जाता, फिर भी उनका उत्तर जानना आवश्यक है अन्यथा सूचना आधी-अधूरी लगती है। अतः प्रेषक को चाहिए कि अपनी व्यापारिक शर्तों में सभी बातों को स्पष्ट करे।
(iii) जब श्रोता सभी बातों की जानकारी लेता है, तत्पश्चात् यदि कोई सूचना फिर भी बच गयी हो तो उसे उपलब्ध करायी जानी चाहिए। लेकिन इसे करने के लिए संवाद का स्पष्ट होना आवश्यक है।
(iv) श्रोता को सार्थक एवं उपयोगी सूचना देना सम्प्रेषण कर्त्ता का नैतिक कर्त्तव्य ही नहीं है बल्कि श्रोता का विश्वास जीतने के लिए भी आवश्यक है। अतः श्रोता को सूचना देने के पूर्व यह निश्चित कर लेना चाहिए कि वह सत्य है या नहीं।
(v) संगठन के बाहर के श्रोता द्वारा सूचना मांगने पर तो यह कानूनी मर्यादा होती है।
(vi) श्रोता को सूचना उपलब्ध कराने के पूर्व उसे कई बार एवं कई प्रकार से जाँचा जाये।
(2) प्रेरणा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति- सम्प्रेषण प्रेषक को चाहिए कि अपना संदेश इस प्रकार तैयार करे कि श्रोता उसे स्वीकार करने को विवश हो जाये। इसके लिए निम्नलिखित कार्य किये जाने चाहिए—
(i) आधुनिक एवं नवीनतम तकनीकों का सहारा लिया जाये।
(ii) संदेश का विरोध न हो, के लिए संदेश की आवश्यकता होने पर सम्प्रेषित किया जाये।
(ii) कहे संदेश को नहीं सुनने की समस्या उत्पन्न होती है। ऐसी दशा में श्रोता की प्रेरणात्मक आवश्यकता की पूर्ति करना आवश्यक है।
(iv) श्रोताओं से मिलने का समय लेना, उनसे अन्य वार्तालाप करना, जो बातें उन्हें पसंद उन पर अधिक ध्यान दिया जाये।
(v) श्रोता से धीरे-धीरे बात करते हुए मुख्य मुद्दे पर आना चाहिए।
(3) व्यावहारिक आवश्यकताओं की पूर्ति— अन्य आवश्यकताओं की तुलना में श्रोता प्रेरणात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करने से वह सम्प्रेषण प्रेषक की बातें सुनने को जल्दी तैयार हो जाता है। लेकिन दूसरी उपयोगिता तब ही संभव है, जब वह संदेश को स्वीकार भी करे। इसके लिए निम्न कार्य किये जाने चाहिए—
(i) संदेश को सरल, सहज एवं स्वीकार योग्य बनाया जाये।
(ii) आज की व्यस्तता से जब श्रोता को संदेश सुनना पड़ता है तो उसे व्यावहारिक बनाने के लिए संदेश लंबा नहीं होना चाहिए।
(iii) संदेश की विषय-वस्तु मोटे-मोटे शीर्षक के रूप में लिखनी चाहिए।
(iv) यदि आवश्यक हो तो संदेश का सार भी दिया जाय तो कोई बुराई नहीं है।
(v) संदेश को आवश्यकतानुसार चित्रों, रेखाचित्रों, आलेखों एवं सारिणी के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। फलस्वरूप श्रोता संदेश के प्रति अधिक सचेत एवं सजग होंगे।
इस प्रकार श्रोताओं की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करके उन्हें संतुष्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त श्रोताओं को संतुष्ट करने के लिए गरीब व्यक्ति या श्रोता के लिए सामाजिक परिवर्तन के संदेश को ध्यान से सुनता है, अतः सम्प्रेषण प्रेषक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
यदि श्रोता बच्चा है तो उस पर नाट्य शैली का अधिक प्रभाव पड़ता है। अतः यदि उन्हें कहानी, नाटक के माध्यम से संदेश दिया जाय तो अधिक प्रभावी होगा। इसी प्रकार प्रौढ़ उम्र के व्यक्ति, प्रायः नये विचारों एवं संदेशों को आसानी से स्वीकार नहीं करते। ये अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर पुराने विचारों से डटे रहते हैं और परिवर्तन के प्रति उदासीन रहते हैं। यद्यपि यदि कोई संदेश अत्यन्त रुचिकर ढंग तथा आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाये तो ये इसका श्रवण ध्यान से करते हैं, किन्तु अपने विचारों को परिवर्तित नहीं करते हैं