लिखित सम्प्रेषण
अभिप्राय (Meaning)-
लिखित सम्प्रेषण से अभिप्राय उस संदेश सम्प्रेषण से है जो लिखित में हो। अन्य शब्दों में, यह एक ऐसा सम्प्रेषण का साधन है जो मौखिक न होकर लिखित रूप में होता है। जिस सम्प्रेषण में सूचनाओं का आदान-प्रदान लिखकर करते हैं, ज्यादातर औपचारिक होता है, वह लिखित सम्प्रेषण के नाम से जाना जाता है। साधन या विधियाँ (Means or Methods)—-
लिखित सम्प्रेषण के साधन या विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) पत्राचार — आज के युग में कम्पनी में प्रतिदिन आने वाले कम्पनी से प्रतिदिन बाहर जाने वाले पत्र व्यवसाय एवं इसके ग्राहकों के मध्य संचार की जीवन रेख बनाते हैं।
(2) बुलेटिन-कुछ कम्पनियों द्वारा अपने कर्मचारियों को कम्पनी की प्रगति से अवगत रखने के लिए बुलेटिन निर्गमित किये जाते हैं जिनमें कम्पनी की सभी गतिविधियों की जानकारी मिलती है।
(3) वार्षिक प्रतिवेदन – कम्पनियों के वार्षिक प्रतिवेदन से अंशधारियों एवं ऋण पत्रधारियों को कम्पनी के विकास, गतिविधियों एवं नीतियों की जानकारी होती है।
(4) स्मरण- पत्र —– दैनिक सामान्य प्रशासन से संबंधित सूचनायें एवं निर्देश प्रसारित करने के लिए कई कार्यालयों में स्मरण-पत्र का प्रयोग किया जाता है।
(5) कार्यवाही विवरण या सूक्ष्म-प्रत्येक सभा में किये गये कार्य तथा लिये गए निर्णयों का यह एक लिखित अभिलेख होता है। सूक्ष्म की प्रतिलिपियों सूचनार्थ बाद में में उपस्थित रहने वाले अन्य व्यक्तियों में प्रसारित की जा सकती हैं।
( 6 ) राजकीय प्रकाशन—कई राजकीय प्रकाशनों में भी ऐसी सूचना पर्याप्त मात्रा के उपलब्ध होती है जो संगठन के लिए उपयोगी होती है।
(7) संगठन- पुस्तिकाएँ—संगठन पुस्तिकाएँ, कार्यविधि पुस्तिकाएँ तथा कार्यालय पुस्तिकाएँ भी कर्मचारियों को सूचनाएँ एवं निर्देश प्रदान करती हैं, तथा प्रमाप, नियम एवं कार्य विधि प्रस्तुत करती हैं।
(8) व्यापारिक पत्रिकाएँ—व्यापारिक पत्रिकाओं में तकनीकी विषय पर लेख देका अथवा व्यापारिक पत्रिकायें मंगाकर संस्थान अपने कर्मचारियों को संचार प्रेषित कर सकता है।
(9) सुझाव-परियोजनाएँ—जब संस्था ठीक ढंग से संचालित की जाये तो सुझाव परियोजनाएँ कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने, कार्य के लिए उत्साह पैदा करने एवं कार्य में अभिरुचि उत्पन्न करने के लिए एक सशक्त सम्प्रेषण का साधन बन जाती हैं।
(10) नीति पुस्तिकायें कुछ कम्पनियाँ नीति पुस्तिकायें भी रखती हैं जिनमें कम्पनी की सामान्य नीति एवं अन्य विभागीय नीतियाँ दी हुई होती हैं। ये पुस्तिकायें कार्यवाहकों एवं पर्यवेक्षकों के लिए एक उपयोगी उपकरण होती हैं।
लाभ एवं गुण (written communication Advantages or Merits)
लिखित सम्प्रेषण के लाभ या गुण निम्नलिखित हैं-
(1) प्रत्येक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नहीं—लिखित सम्प्रेषण के लिए पक्षकारों के बीच सीधा एवं प्रत्यक्ष सम्पर्क का होना आवश्यक नहीं है।
(2) कम खर्चीला— यदि संदेश प्रेषक एवं प्रेषिति भिन्न-भिन्न शहरों या नगरों में रहते हों और अन्य संदेश लिखित रूप में डाक से भिजवाया जाय तो साधारण व्यय से यह कार्य सम्पन्न हो जायेगा।
(3) स्पष्टता —जो संदेश लिपिबद्ध कर लिया जाता है, उसमें स्पष्टता आ जाती है जिससे संदेश में अधिक प्रभावोत्पादकता उत्पन्न हो जाती है। लिखी बात के अनेकार्थ लगाने की भी संभावना कम रहती है।
(4) लिखित प्रमाण-लिखित संदेश भविष्य में विवाद उत्पन्न होने पर साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संदेश के लिखित होने पर कोई भी पक्ष इससे विमुख नहीं हो सकता है।
(5) विस्तृत एवं जटिल संदेश के लिए उपयोगी लिखित सम्प्रेषण द्वारा विस्तृत एवं जटिल संदेश को जिसे याद रखना कठिन होता है, सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है।
(6) दीर्घ एवं स्थायी अस्तित्व-लिखित संदेश स्थायी अभिलेख के रूप में होता है। जिसे चाहे जब देखा एवं पढ़ा जा सकता है। अतः इसका दीर्घ एवं स्थायी अस्तित्व होता है।
(7) एक साथ अनेक व्यक्तियों को सूचना-यदि एक साथ एक ही सूचना अथवा संदेश अनेक व्यक्तियों को अलग-अलग दिया जाना हो, तो ऐसी स्थिति में लिखित सम्प्रेषण ही सम्प्रेषण की सर्वोत्तम विधि है।
(8) भविष्य में संदर्भ के लिए उपयुक्त—संदेश के लिपिबद्ध होने के कारण यह स्थायी रूप ग्रहण कर लेता है और आवश्यकता पड़ने पर भविष्य में इसे संदर्भ के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
(9) प्रबंधकीय कार्यों के लिए सहायक – लिखित सम्प्रेषण द्वारा किसी संस्था के संगठन में कार्य कर रहे व्यक्तियों का संगठन चार्ट्स, नीति-पुस्तिकाओं आदि के माध्यम से उनकी स्थिति, अधिकार, कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व आदि का ज्ञान सरलता से कराया जा सकता है जिसके कारण वे अपने अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत ही कार्य करते हैं फलस्वरूप प्रबंधकीय कार्य सरल हो जाता है।
(10) मतान्तर के लिए स्थान नहीं—चूँकि इसमें दिया गया संदेश लिखित रूप में ही होता है। अतएव उसकी विषय-वस्तु के संबंध में संबंधित पक्षकारों के बीच मतान्तर के लिए कोई स्थान नहीं रहता।
हानि या दोष (written communication Disadvantages or De-merits)—
लिखित सम्प्रेषण की निम्नलिखित हानियाँ अथवा दोष हैं-
(1) श्रम, समय एवं धन का व्यय जो संदेश छोटा हो एवं प्रत्यक्ष रूप में दूसरे पक्ष को प्रेषित किया जा सकता हो, यदि ऐसे संदेश को लिख कर भेजा जायेगा तो यह श्रम, समय एवं धन का अपव्यय ही होगा अतः प्रत्येक दशा में लिखित सम्प्रेषण अनुपयुक्त है।
(2) गोपनीयता का भंग होना-लिखित सम्प्रेषण में गोपनीयता भंग होती है क्योंकि कार्यालय कर्मचारियों द्वारा न केवल टाइप किया जाता है अपितु प्रेषित भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त लिफाफे पर व्यक्तित्व एवं गोपनीय शब्द लिखकर देने से भी गोपनीयता भंग होती है।
(3) संदेश प्रेषण में अनावश्यक विलम्ब-जब संदेश लिखित रूप में प्रेषित किया गया हो तो दूसरा आलेख तैयार करने, टाइप कराने, अधिकारी के हस्ताक्षर कराने एवं प्रेषण में अत्यधिक विलम्ब हो जाता है। इससे अधिक हानि उठानी पड़ती है।
(4) संचार के बाद सुधार कठिन एक बार लिखित संदेश का प्रेषण करने के बाद उसमें किसी प्रकार का सुधार करना अथवा परिवर्तन करना असंभव हो जाता है। ऐसा करने के लिए पुनः लिखित सम्प्रेषण करना होगा।
(5) सभी संदेशों का न पढ़ा जाना सामान्यतः यह देखा जाता है कि समस्त लिखित संदेश प्रेषिति द्वारा नहीं पढ़े जाते हैं। यदि वे न पढ़े जाये तो सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती है, उसके उद्देश्य समाप्त हो जाते हैं।
(6) लालफीताशाही को प्रोत्साहन-जिन व्यावसायिक संस्थाओं में लिखित संदेशों एवं आदेशों का अधिक आश्रय लिया जाता है उसमें अफसरशाही एवं लालफीताशाही का बोलबाला हो जाता है। ऐसी संस्थाओं में कार्य करने वाले कर्मचारी किसी कार्य को करने को तब तक तैयार नहीं होते जब तक कि उक्त कार्य के विषय में उन्हें लिखित रूप में निर्देश अथवा आदेश न दिये जायें।
(7) प्रेषक की भावनाओं का ज्ञान करना कठिन—यह एक कठिन कार्य है क्योंकि प्रत्येक बात की शब्दों द्वारा अभिव्यक्ति करना कठिन होता है।
(8) प्रतिक्रिया की तुरन्त जानकारी असंभव- इसमें प्रेषित किये जाने वाले संदेश के विषय में प्रेषिति की प्रतिक्रिया की तुरन्त जानकारी करना संभव नहीं होता है।
मौखिक V/s लिखित सम्प्रेषण (Oral Vs. Written Communication)
अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि कौन सा सम्प्रेषण साधन अपनाये ? इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि दोनों साधनों के अपने गुण-दोष हैं। फिर भी लिखित सम्प्रेषण सब से उपयुद्ध है। अतएव सदैव इसी का उपयोग किया जाना चाहिए। व्यवस्था में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जबकि मौखिक सम्प्रेषण आवश्यक हो जाता है। अतएव इन दोनों में से सम्प्रेषण के किस रूप को अपनाया जाय और किसको नहीं ? इस संबंध में थियोहैमन ने कहा है, “यदि प्रबंधक केवल एक विधि को काम में लाता है तो उससे गंभीर अकार्यकुशलता का जन्म होगा।” इसका अर्थ यह है कि आवश्यकतानुसार सम्प्रेषण के इन दोनों साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए।
बैथल, सटवाटर, स्मिथ एवं स्टैक मैन के अनुसार, “शीघ्रगामी द्विमार्गीय सम्प्रेषण आवश्यक है। कुछ दशाओं में मौखिक सम्प्रेषण अधिक उपयुक्त माना जाता है क्योंकि वाणी अधिक व्यक्तिगत एवं प्रभावी और लिखित शब्दों से अधिक स्पष्ट करने वाली हो सकती है। प्रायः जो मौखिक सम्प्रेषण होता है, उसका लिखित ब्यौरा रखना भी वांछनीय होता है और जहाँ अंकों का संकलन और इन्द्राज करना हो, वहाँ तो यह अनिवार्य है। अधिक लोकप्रिय माध्यम वह है जो समाचार, रेखाचित्र, पत्र एवं छोटे-छोटे औजार आदि भी उसी सरलता से ले जा सके।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि सम्प्रेषण माध्यम का स्वरूप लिखित हो अथवा मौखिक दोनों का अपना-अपना महत्त्व है, अपना-अपना स्थान है ये दोनों एक-दूसरे के प्रतिस्पद्ध न होकर पूरक होते हैं। इनमें से सदा के लिए किसी एक को अपनाना तथा दूसरे का परित्याग करेगा, तो मूखर्तापूर्ण कार्य होगा, वरन् परिस्थिति एवं आवश्यकता के अनुरूप ही उचित विधि का चुनाव किया जाय।