किस्म नियंत्रण की आधुनिक तकनीकें / विधियाँ / उपाय समझाइए, Modern techniques and methods of variety control

Modern techniques and methods of variety control

किस्म नियंत्रण की आधुनिक तकनीकें/ विधियाँ/उपाय

शायद ही ऐसा कोई उत्पादक हो जो सैद्धान्तिक रूप से यह स्वीकार करने के लिए तैयार न हो कि किस्म नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है। अतः इसे लागू किया जाना चाहिए। अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इसे कैसे लागू किया जाय ? माल का उत्पादन निर्धारित किस्म का हो, इसके लिए निम्नलिखित तकनीकें/विधियाँ अपनायी जा सकती हैं अथवा उपाय किये जा सकते हैं—

( 1 ) किस्म व्यक्ति तकनीक—इस प्रक्रिया में कार्यस्थल पर ही वस्तु की किस्म की जाँच करने के लिए विशिष्ट व्यक्ति की नियुक्ति कर दी जाती है। वह व्यक्ति किस्म की निरन्तर जाँच करता है, उत्पादन प्रक्रिया में लगे हुए व्यक्तियों को वस्तु के दोषों को दूर करने के लिए आवश्यक निर्देश देता है। यदि दोष अधिक हैं एवं उनमें सुधार नहीं हो रहा है तो वह प्रबंधक को उत्पादन प्रक्रिया को बंद करने का सुझाव दे सकता है।

(2) स्क्रेप प्रतिवेदन निर्माण – किस्म नियंत्रण की इस विधि में प्रतिदिन या प्रति सप्ताह ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाती है तथा विभागों में चार्ट्स एवं बुलेटिन्स के रूप में जारी कर दी जाती है जो यह बतलाती है कि गलतियाँ कहाँ हुई हैं, उनके कारण क्या हैं एवं उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है।

( 3 ) हानि क्षतिपूर्ति विधि – इस विधि में जो कर्मचारी वस्तुओं की किस्म को खराब कर देते हैं, उनके पारिश्रमिक में से हानि की राशि काट ली जाती है ताकि वे भविष्य में सावधानी के साथ कार्य करे। यह विधि ऋणात्मक है जो दण्ड की व्यवस्था करती है। इसलिए श्रम संघों की आन्दोलनकारी प्रवृत्ति ने इस विधि की प्रयुक्ति के स्थान पर प्रेरणात्मक किस्म नियंत्रण विधियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया है।

(4) निरीक्षण विधि-निरीक्षण, उत्पाद की किस्म के पूर्व निर्धारित प्रमापों से वस्तु की किस्म की तुलना एवं जाँच करने से संबंधित एक क्रिया है। इसमें उत्पादन प्रक्रिया के पहले, उत्पादन प्रक्रिया के समय एवं उत्पादन प्रक्रिया के बाद की जाने वाली तुलना को सम्मिलित किया जाता है।

निरीक्षण का उद्देश्य दोषपूर्ण कार्यों को अलग करना एवं भावी कार्यों में उन दोषों से बचना होता है-

निरीक्षण दो प्रकार का हो सकता है-

(i) केन्द्रित निरीक्षण – इसके समस्त कार्य केन्द्रीय निरीक्षण विभाग के पास जाँच के लिए भेजे जाते हैं।

(ii) विकेन्द्रित निरीक्षण- इसमें निरीक्षकों द्वारा जाँच का कार्य कार्य स्थल पर आकर किया जाता है-

इस प्रकार निरीक्षण विधि से घटिया उत्पादों एवं सेवाओं को इकाइयों से पृथक् किया जाता है और उत्पादों का उनके निर्माण की अवस्था में निरीक्षण दोषपूर्ण इकाइयों पर पुनः कार्य को भी समाप्त करती है।

(5) पर्यवेक्षक बोनस योजना विधि – यह किस्म नियंत्रण की अप्रत्यक्ष विधि है जो- पर्यवेक्षकों को किस्म के महत्त्व को समझने एवं स्वीकार करने पर बल देती हैं। इस विधि के अन्तर्गत उन पर्यवेक्षकों को ऊँची दरों से बोनस दिया जाता है जिनके विभागों में बनने वाली वस्तुओं की किस्म सही या श्रेष्ठ होती है।

(6) पुनः कार्य प्रतिवेदन विधि – इस विधि के अन्तर्गत खराब किस्म के कारण जिन कार्यों को पुनः किया जाता है, उनका विस्तृत विवरण, जैसे-श्रम एवं समय लागत, विक्रय में विलम्ब, बाजार पर प्रभाव आदि का उल्लेख करते हुए प्रतिवेदन निर्गमित किया जा सकता है. जिससे लोगों को भविष्य में सतर्क रहने की प्रेरणा मिलती है।

(7) नियत प्रमापों एवं मानकों की स्थापना-किस्म नियंत्रण हेतु उत्पादन के लिए नियत प्रमापों एवं मानकों (Standards and Specifications) की स्थापना करना सर्वश्रेष्ठ है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य किये जाने चाहिए-

(i) किस्म नियंत्रण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रमापों एवं मानकों की स्थापना कर देनी चाहिए।

(ii) इनकी स्थापना के लिए क्रय विक्रय, निर्माणी एवं निरीक्षण विभागों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए एवं,

(iii) प्रमापों तथा मानकों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जानी चाहिए।

इस प्रकार इनके संबंधों में किसी प्रकार के भ्रम के उत्पन्न होने की किंचित् मात्र भी संभावना न रहने पाये।

(8) कच्चे माल पर नियंत्रण- निर्मित माल की किस्म काफी सीमा तक कच्चे माल की किस्म द्वारा प्रभावित होती है। यदि कच्चे माल की किस्म खराब होगी तो उत्पादित माल की किस्म भी स्वतः ही खराब होगी। अतः पहले से ही यह निर्धारित कर लेना चाहिए कि किस किस्म का कच्चा माल खरीदा जायेगा। आदेश देते समय एवं माल की सुपुर्दगी लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि केवल प्रमापित किस्म के कच्चे माल को ही स्वीकार करना है। कच्चा- माल किस किस्म का चाहिए, इसकी सूचना क्रय विभाग द्वारा पहले से ही कच्चे माल के विक्रेताओं को देनी चाहिए।

(9) क्रियाओं पर नियंत्रण- केवल निर्धारित किस्म के माल का ही उत्पादन हो, इसके लिए उत्पादन क्रियाओं पर समुचित नियंत्रण स्थापित होना चाहिए। इसके लिए स्वचालित विधियों का ही उपयोग किया जाना चाहिए।

(10) बिल नियंत्रण का वातावरण उत्पन्न करना—किस्म नियंत्रण की स्थापना करना किसी एक या दो व्यक्ति का कार्य न होकर समूचे उपक्रम का कार्य है। इसकी सफलता विभिन्न विभागों के पारस्परिक सहयोग पर निर्भर करती है, अतः इसके लिए समूचे उपक्रम में किस्म नियंत्रण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करना होगा। सभी के मन में यह बात अच्छी तरह से भरनी होगी कि किस्म नियंत्रण उपक्रम की आधार शिला है। अतः सभी को इस दिशा में प्रयत्न करने होंगे।

(11) यंत्रों की उपयुक्तता की जाँच- हम यह जानते हैं कि माल की किस्म, उपकरणों एवं यंत्रों की उत्तमता अथवा घटियापन से प्रभावित होती है। उपकरणों की टूटफूट एवं खराबी से प्रभावित किस्म को बनाये रखने में कठिनाई आती है। अतः यह आवश्यक है कि उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त किये जाने वाले सभी यंत्रों एवं उपकरणों की जाँच परख कर लेनी चाहिए।

( 12 ) सांख्यिकीय किस्म नियंत्रण — यह वस्तु नई दिशा को नियंत्रित करने का एक वैज्ञानिक एवं आधुनिक तकनीक है। इसके अन्तर्गत सांख्यिकीय औजारों का प्रयोग किया जाता है और यह संभाविता एवं निर्देशन (Probability and Sampling) सिद्धान्तों पर आधारित होती है।

सांख्यिकीय किस्म नियंत्रण का अर्थ किस्म नियंत्रण से संबंधित समस्याओं को संभावना के गणितीय सिद्धान्त पर आधारित सांख्यिकीय विधियों को अपनाने की तकनीक से है, जिसका उद्देश्य किस्म संबंधी प्रमाप स्थापित करना एवं अत्यन्त मितव्ययितापूर्ण तरीके से उसको उपयुक्त करना है।

सांख्यिकीय किस्म नियंत्रण की दो प्रमुख तकनीकें हैं-

(i) नियंत्रण चार्ट – इसमें प्रबंधक सर्वप्रथम किसी उत्पाद की किस्म के प्रभाव को निर्धारित करते हैं, तत्पश्चात् प्रक्रिया चार्ट की सहायता से मुख्य गुणों की जाँच करते हैं। जाँच के दौरान यदि उत्पाद की किस्म में ऐसे कोई दोष हों तो उसे आसानी से शीघ्रता से दूर किया जा सकता है।

(ii) स्वीकृति निदर्शन जब वस्तुओं का उत्पादन काफी बड़ी मात्रा में किया जाता है, तब स्वीकृति निदर्शन तकनीक को प्रयुक्त किया जाता है अतः इस तकनीक से यह निश्चित किया जाता है कि एक निश्चित मात्रा के असंतोषजनक उत्पादन के अतिरिक्त बाजार में प्रवेश न करें। स्वीकृति निर्देशन विधि में दो प्रकार की जोखिम विद्यमान रहती हैं—उत्पादक जोखिम एवं उपभोक्ता जोखिम । स्वीकृति निदर्शन विधि वहाँ अधिक लाभप्रद होती है, जहाँ उत्पादन प्रक्रिया हमेशा स्थिर रहती है। इस तकनीक से निरीक्षण लागत में कमी लायी जा सकती है।

सांख्यिकीय किस्म नियंत्रण के परिणामस्वरूप दूषित इकाइयों के अनुपात में कमी आने, निरीक्षक लागत में कमी होने तथा मशीन एवं श्रमिकों की दक्षता पूर्ण उपयोग होने से उत्पादन लागतों में कमी आती है। यही नहीं, विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं की किस्म को लगातार उच्च बनाये रखती है जिसने संस्था की ख्याति में भी वृद्धि होती है।

Leave a Comment