उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण का महत्त्व
उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण के बिना कोई भी संस्था अपने लाभ लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकती है। उपक्रम की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली उत्पादन के व्यवस्थित नियोजन एवं नियंत्रण पर ही निर्भर करती है। इस संबंध में एफ. जी. मूरे ने कहा है कि, “किसी कारखाने में उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण का उतना ही महत्त्व है, जितना कि मानव शरीर में स्नायुतंत्र का।” उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण के महत्त्व को इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है-
(1) उत्पादन लागत में कमी— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य अनावश्यक व्ययों में कमी करते हुए उत्पादकता में वृद्धि करना होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सामग्रियों एवं यंत्रों का पूर्ण सदुपयोग किया जाता है और इनके प्रवाह को भी निरन्तर बनाये रखा जाता है जिससे में कमी आती है।
(2) विभिन्न क्रियाओं में समन्वय की स्थापना— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण से संस्था की विभिन्न क्रियाओं में प्रभावी समन्वय स्थापित किया जाता है। परिणामस्वरूप उत्पादन लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ-साथ संस्था के लक्ष्यों को भी प्राप्त किया जा सकता है। इस संबंध में एफ. जी. मूरे लिखते हैं कि “उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण के विभिन्न कार्यों की तुलना मानव शरीर से की जा सकती है। जिस प्रकार मनुष्य के अंदर विभिन्न अवयव एक-दूसरे से संबंधित रहते हैं और समुचित नियंत्रण से समस्त विधिवत् रूप से कार्य करते हैं, उसी प्रकार औद्योगिक संस्था में विविध क्रियाओं के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण नितान्त आवश्यक होता है।”
( 3 ) संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति— प्रत्येक उपक्रम का मुख्य लक्ष्य समाज द्वारा चाही गई वस्तुओं का उत्पादन करके लाभ प्राप्त करना है। प्रभावी उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण से ही इस लक्ष्य को हासिल कर सकते है।
(4) कार्यक्षमता का पूर्ण उपयोग— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण से श्रमिक एवं मशीन अनावश्यक रूप से खाली न तो रह पाती है क्योंकि अपेक्षित उत्पादन के लिए कच्चा माल सदैव उपलब्ध रहता है। परिणामतः श्रमिकों की एवं मशीनों की कार्य क्षमता का पूर्ण सदुपयोग किया जा सकता है।
(5) संग्रहणीय माल की मात्रा पर नियंत्रण— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण के फलस्वरूप प्रबंधकों को कच्चे माल एवं अन्य सामग्रियों की आवश्यक संग्रहणीय मात्रा और निर्मित माल की गोदामों में रखी जाने वाली मात्रा को नियंत्रित करने में भी आसानी रहती है। एक ओर कच्चे माल का क्रय उत्पादन की योजना के अनुसार ही किया जाता है तो दूसरी ओर निर्मित माल भी पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ही बनता है जिससे कच्चे माल एवं निर्मित माल की मात्रा पर नियंत्रण बना रहता है।
(6) भावी आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण के द्वारा ग्राहक की भावी आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन किया जा सकता है। साथ ही उत्पादन साधनों की भावी आवश्यकता का निर्धारण किया जा सकता है।
(7) उत्पादन साधनों की भावी आवश्यकता का निर्धारण— उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण द्वारा भविष्य में उत्पादन के लिए जिन कम या अधिक साधनों की आवश्यकता होगी, का पहले से ही निर्धारण किया जा सकता है। परिणामतः साधनों की पूर्व में ही व्यवस्था की जा सकने के कारण संस्था को साधनों की कमी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ सकता है।
(8) कम विनियोजन से अधिकतम उत्पादन संभव उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण का एक लाभ यह भी है कि यह कम विनियोजन को प्रोत्साहित करता है। इसका कारण यह है कि समस्त साधनों का एकीकरण एवं संयोजन पूर्वानुमान के आधार पर किया जाता है। परिणामतः न तो कच्चा माल अनावश्यक रूप से अधिक मात्रा में क्रय किये जाने की स्थिति का सामना करना पड़ता है और न ही निर्माणाधीन सामग्री (Work in progress) के उत्पादन के किसी स्तर पर पड़े रहने की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इस प्रकार कम विनियोजन से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
( 9 ) जन सम्पर्क एवं ख्याति में वृद्धि – एक पूर्ण नियोजित एवं नियंत्रित व्यावसायिक उपक्रम केवल औद्योगिक संबंधों में ही सुधार नहीं करता वरन् जनसम्पर्क एवं कम्पनी की ख्याति में वृद्धि करता है। प्रत्येक संगठन जो अपनी क्रियाओं को व्यवस्थित रूप से निष्पादित करता है उसे जनसाधारण का समर्थन भी प्राप्त हो जाता है और जनता द्वारा उसे अच्छी नजरों से भी देखा जाता है।
(10) विभिन्न पक्षकारों को लाभ – प्रो. मैक्नीस के अनुसार उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण से इन पक्षकारों को लाभ पहुँचता है–
(i) उपभोक्ता उपभोक्ता को श्रेष्ठ किस्म की वस्तु की प्राप्ति होती है, कम मूल्य पर मिलती है, उपयुक्त समय पर मिलती है।
(ii) श्रमिकों पर्यात एवं उचित मजूदरों की प्राप्ति होती है, स्थायी रोजगार मिलता है, कार्य सुरक्षा बढ़ती है और कार्यदशा अच्छी मिलती है।
(iii) विनियोक्ता विनियोजित धन को सुरक्षा होती है, पर्याप्त लाभ की प्राप्ति होती है।
(iv) समाज एवं राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक स्थायित्व, सुरक्षा एवं समृद्धि होती है।
( 11 ) कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि – उत्पादन नियोजन एवं नियंत्रण से कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। इसका करण यह है कि यह उत्पादन कार्य के प्रभावी एवं सुगम प्रवाह को बनाये रखने में सहायक होता है और भावी बाधाओं को पूर्वानुमान के आधार पर दूर कर लिया जाता है।
कर्मचारियों को स्पष्ट रूप से इस बात का पूर्व ज्ञान रहता है कि क्या, कब और कैसे कार्य को निष्पादित करना है। परिणणामतः उनके कार्य में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं हो पाता है जिससे कि इनकी कार्यक्षमता में वृद्धि के साथ-साथ उनके मनोबल में भी वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त उच्च कार्य कुशलता तथा कार्य सुरक्षा और अच्छी कार्य की दशाओं से औद्योगिक संबंधों में भी सुधार होता है।