संदेशवाहन की बाधाओं को स्पष्ट कीजिए एवं उन्हें दूर करने के लिए उपयुक्त सूचना दीजिए।Explain the barriers of Communication

‘संदेशवाहन की मुख्य बाधाएँ / अवरोध

“यह कहा जाता है कि सम्प्रेषण मार्ग बाधाओं से परिपूर्ण है।” हम इस कथन से सहमत है क्योंकि संस्थाओं में प्रभावी सम्प्रेषण की बातों एवं विशेषताओं की अवहलेना की जाती है। अनेक बार ये बाधाएँ प्रेषक एवं प्रेषिति के मध्य आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक भिन्नताओं का परिणाम होती हैं ? इसके अतिरिक्त प्रेषक एवं प्रेषिति के उद्देश्यों एवं दृष्टिकोणों में वैचारिक मतभेदों एवं विरोधाभासों का पाया जाना भी सम्प्रेषण के मार्ग में बाधाओं की उत्पत्ति का कारण बन जाता है। संक्षेप में, सम्प्रेषण की मुख्य बाधाएँ निम्नलिखित

(1) संगठन संरचना संबंधी बाधाएँ प्रायः बड़े उपक्रमों/संस्था में प्रबंधकों एवं अधीनस्थों के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क का अभाव रहता है। वरिष्ठतम अधिकारी एवं अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य अनेक प्रबंध के स्तर होते हैं। इन स्तरों के माध्यम से होकर संदेशों का आदान-प्रदान होता है। अनेक बार इस सम्प्रेषण-प्रक्रिया में संदेश दूषित हो जाता है और अपना मूल अर्थ हो खो देता है। 

(2) अवसर की अनुपयुक्तता गरम लोहे पर ही हथोड़ा चलाओ सम्प्रेषण की प्रभावोत्पादकता का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। अनुभवहीन व्यक्ति अवसर की उपयुक्तता का विचार किये बिना जो सम्प्रेषण करते हैं, वह एक निरर्थक एवं निष्फल अभ्यास होता है। कभी-कभी सम्प्रेषण एवं सम्प्रेषिति के पास समयाभाव होने से भी सम्प्रेषण का पूरा ध्यान नहीं दिया जाता है।

(3 ) दुर्बल पर्यवेक्षण एवं नेतृत्व संबंधी बाधाएँ – किसी व्यावसायिक संगठन में यदि दुर्बत पर्यवेक्षण एवं नेतृत्व हो तो ऐसी स्थिति में सम्प्रेषण के मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न हो जाती है। उदाहरणार्थ, यदि संस्था के पर्यवेक्षक स्वयं ही सुरक्षा अथवा अन्य उद्देश्यों की दृष्टि से बनाये गये विषयों का निरन्तर उल्लंघन करते रहते हैं, जैसे धूम्रपान वर्जित क्षेत्र में निरन्तर धूम्रपान करते रहना। ऐसी स्थिति में वे अपने अधीनस्थों को कितनी भी अच्छे ढंग से सुरक्षा नियमों को समझावे, सफलता नहीं मिलेगी।             

(4) भाषा संबंधी समस्या-सम्प्रेषक तथा सम्प्रेषिति के विचार विनिमय को का माध्यम भिन्न-भिन्न अथवा इन पक्षकारों का बौद्धिक स्तर भिन्न भिन्न होने से विचारों सार्थकता का पुल नहीं बांधा जा सकता है अतः भाषा की विविधता प्रभावी सम्प्रेषण में बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है।

(5) मनोवैज्ञानिक बाधा–अनेक बार उच्चाधिकारियों व अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य कुछ बातों को लेकर कटुता उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में सुनना-सुनाना मना कर दि जाता है। लेकिन नियोक्ता या प्रबंधक भी कठोर रुख अपनाकर हठधर्मी धारण कर लेता है और कर्मचारों वर्ग की बात पर ध्यान देने से इन्कार भी कर देता है। इन सब कारणों से एक-दूसरे के विचारों को समझने में मनोवैज्ञानिक बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं।

(6) श्रवण संबंधी बाधाएँ—व्यावसायिक सम्प्रेषण की श्रवण संबंधी बाधाओं को जोसेफ दूहरने ने रोचक शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत की है, ” श्रवण सम्प्रेषण का सर्वाधि उपेक्षित भाग होता है। आधी बात का सुनना अपने इन्जन को निष्क्रिय गति चालक की स्थिति में दौड़ाने के समान है। आप गैसोलीन का उपयोग तो करते हैं, किन्तु कहीं भी आगे नहीं जाते हैं।” अतः यदि टेलीफोन या अन्य साधन के एक सिरे पर वार्तालाप करने वाले की बात यदि दूसरी ओर सुनाई नहीं पढ़े तो सम्प्रेषण पूर्णतः निरर्थक होता है। इस प्रकार यदि संदेश को अपने लक्ष्य तक पहुंचाना है तो सम्प्रेपिति को श्रवण संबंधी भाषा का निवारण किया जाना चाहिए।

(7) पद भिन्नता के कारण बाधाएँ—संगठन संरचना की प्रकृति के अनुसार किसी भी उपक्रम के समस्त कार्यकर्त्ताओं को विभिन्न पदों के अनुसार विभक्त किया जाता है। उच्चाधिकारियों एवं कर्मचारियों के पदों में भिन्नता के कारण अधीनस्थ कर्मचारी अपने उच्चाधिकारियों को निर्भीक भाव से विचार व्यक्त नहीं कर पाते हैं एवं उच्चाधिकारी को अनेक बार अपने पद के मिच्या गौरव के कारण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से खुले हृदय से बात नहीं कर पाते हैं। वस्तुतः निःसंकोच, स्पष्ट एवं सौहार्दपूर्ण सम्प्रेषण हो प्रभावी हो सकता है जो समकक्ष कर्मचारियों के मध्य अधिक संभव होगा।

(8) मानवीय संबंधी बाधाएँ कभी-कभी व्यावसायिक संगठन में कार्य करने वाले व्यक्तियों के मध्य मानवीय संबंध अच्छे नहीं होते हैं जिसके कारण सम्प्रेषण में बाधा उत्पा होती है। एक मेज से दूसरे मेज तक संदेश के पहुँचने में एक सप्ताह से लेकर महीनों तक लग जाते हैं। यही नहीं, भेजे गये संदेश पर कोई न कोई टिप्पणी लगाकर उसे पुनः वापिस कर दिया जाता है यहाँ तक कि परिपूर्ण संदेशों का भी उल्टा हो अर्थ लगाया जाता है।

(9) पदोन्नति की आकांक्षा-प्रायः यह देखा गया है कि अधीनस्थ कर्मचारी अपने नियंत्रण अधिकारियों को रुष्ट कर देने के भय से निर्भीक निःसंकोच भाव से किसी बात पर अपने विचार व्यक्त नहीं करते। इसके विपरीत वे यही बात करते हैं जिनसे उनके अधिकारीगण प्रमन्त्र हो सके और उन्हें पदोन्नति शीघ्र मिल जाय। इस चाटुकारिता का अच्छा परिणाम नहीं निकलता है और प्रबंधक सही स्थिति के ज्ञानार्जन से वंचित रह जाते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने अधिकारिय के द्वारा सुझाव माँगने पर कभी निष्पक्ष तथा उचित विचार प्रस्तुत नहीं करते।           

(10) दोषपूर्ण उद्देश्य संबंधी बाधाएं जब व्यावसायिक सम्प्रेषण का उद्देश्य दोषपूर्ण है तो उससे अच्छे परिणामों की आशा नहीं की जा सकती है। कभी-कभी सम्प्रेषण के प्रकट उद्देश्य वास्तविक उद्देश्य से भिन्न होते हैं। उद्देश्य के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने का भय भी सम्प्रेषण के मार्ग में बाधक बनता है, जैसे आपके कार्य में और सुधार किया जा सकता है तो श्रोता यह समझ सकता है कि आपका कार्य ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में इस प्रकार के तथ्य की प्रतिकूल प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से होती है।

(11) भौगोलिक दूरी संबंधी बाधाएँ – व्यावसायिक सम्प्रेषण की भौगोलिक दूरी संबंधी बाधाएँ भी अनेक हैं, जैसे-

(i) प्रेषक एवं प्रेषिति का एक-दूसरे से बहुत दूरी पर बैठे होना। (ii) व्यावसायिक संगठन की कई इकाइयाँ होना।

(iii) इकाइयों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों को सूचनाओं का देरी से मिलना, एवं

(iv) एक ही बात को बारम्बार दोहराया जाना आदि।

इस प्रकार प्रमुख एवं क्षेत्रीय अथवा इकाई कार्यालयों का समय तथा धन दोनों नष्ट होते हैं और आवश्यक कार्यों के सम्पन्न होने में देरी होती है। जब प्रमुख कार्यालय का दूरी पर स्थित क्षेत्रीय कार्यालयों अथवा इकाइयों पर प्रभावी नियंत्रण, पर्यवेक्षण अथवा समन्वय नहीं हो पाता है तो लिखित सूचनाओं, निर्देशों, अनुदेशों, आज्ञाओं एवं बुलेटिनों का ढेर लग जाता है।

(12) लोगों के हितों की भिन्नता के कारण होने वाली बाधाएँ- मनुष्य संदेश के आवश्यक अंग होते हैं क्योंकि मनुष्य ही संदेश देता है एवं प्राप्त करता है। किन्तु सभी मनुष्य एक समान नहीं होते। उनके व्यक्तित्व, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक स्थिति, व्यावसायिक एवं भौगोलिक पृष्ठभूमि, उनकी विचाधाराएँ एवं दृष्टिकोण आदि में भिन्नता पायी। जाती है। उनके व्यक्तिगत हितों के मध्य टकराव उत्पन्न होता है। जो संदेश एक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है, संभव है कि वह दूसरे व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण न हो। ऐसी स्थिति में सम्प्रेषण के मार्ग में रुकावटें उत्पन्न होती हैं।

सम्प्रेषण की बाधाओं को सुधारने हेतु उपाय (Remedies for Improving in Barriers of Business Communication) 

सम्प्रेषण की अनेक बातों, विचारों, परिस्थितियों एवं संबंधों की अनेक बाधाएँ हैं। इनसे संस्था की आन्तरिक एवं बाह्य व्यवस्था में कठिनाइयाँ आती हैं। अतः इन बाधाओं में सुधार हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

(1) संगठन संरचना संबंधी बाधाओं में सुधार करने हेतु उपाय- संगठन के आकार में वृद्धि होने पर उच्चाधिकारियों और कर्मचारियों के बीच संगठनात्मक दूरी बढ़ जाती है, जिससे पारस्परिक संबंधों में ढिलाई आ जाती है। ऐसी स्थिति में प्रेषित संदेश का स्वरूप इतना बदल जाता है कि जिस भाव से उसे भेजा जाता है, उस भाव से प्राप्तकर्ता को नहीं पहुँचता है। अतः इसमें सुधार करने के लिए अधिकारियों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि निम्न स्तर के कर्मचारी निस्संकोच वातावरण में अपने विचार अधिकारियों के समक्ष रख सकें। इसके साथ ही अनेक औपचारिक सम्प्रेषण विधियों का प्रयोग भी किया जाये।

(2) भाषा संबंधी बाधाओं में सुधार करने हेतु इस संबंध में निम्नलिखित उपाय महत्वपूर्ण है-

(i) प्रयोग में आने वालो भाषा इस प्रकार हो जिसे संदेश प्राप्तकर्त्ता आसानी से समझ गये। 

(ii) ऐसे तकनीकी शब्दों का प्रयोग न हो जिन्हें अन्य पेशे या वर्ग के व्यक्ति नहीं समझ सके।

(iii) तकनीकी भाषा के प्रयोग करने पर लिखित सम्प्रेषण के साथ-साथ मौखिक सम्प्रेषण विधि का भी प्रयोग हो ताकि संदेश प्राप्तकर्त्ता की कठिनाइयों को दूर करके उसे भली-भांति समझाया जा सके।

(iv) किसी भी भ्रामक शब्दों का प्रयोग न किया जाये।

(v) विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के बीच सम्प्रेषण करने पर भाषा का प्रयोग संदेश प्राप्तकर्त्ता के अनुकूल हो।

( 3 ) भौगोलिक दूरी संबंधी बाधाओं में सुधार करने हेतु—भौगोलिक दूरी को कम करने में शीघ्रगामी सम्प्रेषण साधनों का बड़ा महत्त्व है। किन्तु उसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि ये साधन प्रत्यक्ष विचार-विमर्श के विकल्प बन गये हैं। अतएव जब पारस्परिक विचार-विमर्श आमने-सामने बैठकर किया जाना आवश्यक हो तो ऐसा अवश्य किया जाना चाहिए।

(4) दोषपूर्ण उद्देश्य के कारण उत्पन्न बाधाओं में सुधार करने हेतु— दोषपूर्ण उद्देश्य के कारण उत्पन्न बाधाओं में सुधार करने के लिए यह आवश्यक है कि कभी भी इस प्रकार के उपाय नहीं बताये जायें जिनसे निश्चय हो प्रतिकूल प्रतिक्रिया होने की आशंका हो ।

(5) दुर्बल पर्यवेक्षण की बाधाओं में सुधार करने हेतु— संगठन में प्रत्येक पर्यवेक्षक को सम्प्रेषण का स्वस्थ वातावरण पैदा करना चाहिए। सूचनाओं का निर्विघ्न सम्प्रेषण नीचे से ऊपर की ओर हो एवं अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से परामर्श करे और उनकी बात सुने। पर्यवेक्षक स्वयं संस्था के बनाये गये नियमों की पालना करे ताकि कर्मचारियों को भी पालना करने की प्रेरणा मिले।

(6) पदोन्नति भावना की बाधाओं को दूर करने हेतु—जिस संगठन में कर्मचारी की पदोन्नति अपने अधिकारी की कृपा-दृष्टि पर आधारित होती है, वहाँ इस प्रकार की बाधा पैदा होती है अतः इस बाधा को दूर करने के लिए संस्था में एक पदोन्नति नीति बनायी जाये और उस नीति का कठोरतापूर्वक पालन किया जाये। यह नीति इतनी न्यायपूर्ण हो कि कर्तव्यनि परिश्रमी, योग्य अनुभवी व्यक्ति को समय पर पदोन्नति का अवसर उपलब्ध हो, किसी भी अवस्था में खुशामद पसंद और कामचोर व्यक्ति को वह लाभ न मिल सके।

(7) मानवीय संबंधों की बाधाओं में सुधार हेतु— संस्था के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बीच संबंधों के बिगड़ जाने पर प्रत्येक संदेश को उल्टे अर्थ में ही ग्रहण किया जाता है। अतः सम्प्रेषण को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि मानवीय संबंधों को सुधारने हेतु कदम उठाये जाये। मानवीय संबंधों के सुधर जाने पर यह दोष स्वतः ही समाप्त हो जायेगा।

(8) कार्य-स्थिति संबंधी बाधाओं में सुधार करने हेतु — उच्चाधिकारियों को निम्नलिखित उपायों पर ध्यान देना चाहिए- 

(i) अधीनस्थों की कठिनाइयों एवं समस्याओं की शीघ्र जानकारी होने की समुचित व्यवस्था हो।

(ii) संगठन प्रक्रिया, स्वरूप एवं व्यवहार की सही स्थिति से उन्हें अवगत कराया जाये। 

(iii) निम्न स्तरीय अधिकारियों से सुझाव आमंत्रित किये जायें एवं उपयोगी हों तो उन्हें तत्काल स्वीकार कर क्रियान्वित किया जाये। 

(iv) अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ समुचित व्यवहार हो एवं उनके प्रति घृणा की भावना को नहीं पनपने दिया जाये।

(v) किसी विशेष समस्या पर अधीनस्थों को विचार विमर्श हेतु बुलाया जाये।

(9) व्यक्तिगत हितों की भिन्नता की बाधाओं में सुधार करने हेतु व्यक्ति हितों की भित्रता से स्वस्थ सम्प्रेषण के मार्ग में जो बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, उनमें सुधार करने के लिए यह आवश्यक है कि हित भिन्नता के इस दृष्टिकोण को परिवर्तित किया जाये। अतः सम्प्रेषण कर्ता को चाहिए कि वह सम्प्रेषिति के दृष्टिकोण से प्रत्येक बात का परीक्षण करे और उसके हितों का सदैव ध्यान रखे, तभी वह इस बाधा में सुधार करने में सफल हो सकेगा।

( 10 ) श्रवण संबंधी बाधाओं में सुधार करने हेतु — श्रोता को किसी प्रकार की भ्रान्ति न हो, इसके लिए यह ध्यानपूर्वक संदेश को ग्रहण करे। वक्ता का कर्तव्य है कि वह अपनी बात को स्पष्ट रूप से एवं सरल ढंग से समझावे ताकि श्रोता उसकी बात का गलत अर्थ नहीं लगा सके।

(11) मानसिक स्थिति संबंधी बाधाओं में सुधार— सम्प्रेषण में पूर्वाग्रह एवं पूर्वधारणाओं को स्थान दिया जाये। जैसा हो, वैसा ही चलने दे विचारधारा के समर्थकों के दृष्टिकोण को बदल दिया जाये एवं ऐसा करते समय उन्हें स्मरण हो कि उनके पूर्व विचारों को बदलने का प्रयास किया जा रहा है अन्यथा वे विरोध करना प्रारंभ कर देंगे। इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों को संदेश के प्रति आलोचनात्मक रुख होता है, उनके साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाये कि उनका दृष्टिकोण वास्तविक एवं सकारात्मक बन सके।

(12) सुधार हेतु अन्य उपाय-

(i) सम्प्रेषण संबंध प्रतिबंध न्यूनतम एवं व्यावहारिक हो। 

(ii) कर्मचारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम पर बल दिया जाये।

(iii) सम्प्रेषण हेतु आधुनिक विधियों एवं तकनीकों का प्रयोग किया जाये।

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